कल रात मेरी आँख ये कहते
हुई रोई
बर्मा के मुसलमानों की आवाज़
सुने कोई,
दुनिया को जली लाश के मंजर
नही दिखते
मुर्दा हुए एहसास के मंजर
नहीं दिखते
हथियार लिए फिरते अहिंसा के
पुजारी
और खून भरी प्यास के मंजर
नहीं दिखते
अब सारे मसीयाहों की गैरत
कहा खोई
बर्मा के मुसलमानों की आवाज
सुने कोई
कश्ती है समंदर है किनारा
ही नहीं है
है बेसरों सामान सहारा ही
नहीं है
बर्मा में रहे और कोई उनके
अलावा
ये बुद्ध के चेलों को गवारा
ही नहीं है
दुनिया भी ये नामर्द है
चुपचाप है सोई
बर्मा के मुसलमानों की आवाज़
सुने कोई ..
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